शादी में गाना बजाना पड़ सकता है भारी, पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट का बड़ा आदेश

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पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण आदेश में कापीराइट रजिस्ट्रार के 27 अगस्त 2019 के सार्वजनिक नोटिस को रद्द कर दिया है। अब होटलों व बड़े पैलेसों में आयोजित शादी व अन्य कार्यक्रमों में बिना लाइसेंस गाना बजाना भारी पड़ सकता है। अगर आयोजक ने म्यूजिक कंपनी से लाइसेंस नहीं लिया तो यह कॉपीराइट एक्ट का उल्लंघन माना जाएगा।

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दरअसल, कॉपीराइट रजिस्ट्रार ने कहा था कि शादी, बरात, सामाजिक कार्यक्रमों, धार्मिक समारोह में किसी भी साउंड रिकॉर्डिंग का इस्तेमाल कॉपीराइट का उल्लंघन नहीं है और कोई लाइसेंस लेने की आवश्यकता नहीं है।

पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने नोवेक्स कम्युनिकेशन प्राइवेट लिमिटेड की एक याचिका पर सुनवाई की। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में साफ किया है कि किसी भी कार्यक्रम में साउंड रिकार्डिंग के इस्तेमाल की खातिर संबंधित म्युजिक कंपनी से लाइसेंस लेना जरूरी है। जस्टिस राज मोहन सिंह ने यह आदेश दिया है।

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याचिकाकर्ता के पास इन कंपनी के राइट

याचिकाकर्ता कंपनी के पास कई म्युजिक कंपनी के राइट हैं। कंपनी के पास जी एंटरटेनमेंट एंटरप्राइजेज लिमिटेड, इरोस इंटरनेशनल मीडिया लिमिटेड, टिप्स इंडस्ट्रीज लिमिटेड, रेड रिबन एंटरटेनमेंट प्राइवेट लिमिटेड, एसपीआइ म्युजिक प्राइवेट लिमिटेड, थर्ड कल्चर एंटरटेनमेंट जैसे प्रसिद्ध कंपनी के साउंड रिकार्डिंग के कॉपीराइट व सार्वजनिक प्रदर्शन के अधिकार हैं। अधिकार के तहत अगर इन कंपनी के कोई साउंड रिकॉर्डिंग का सार्वजनिक स्थान या पब, होटल, रेस्तरां के साथ-साथ लाइव इवेंट और पार्टियों समेत लाइव कान्सर्ट में किया जाता है तो कंपनी से लाइसेंस लेना जरूरी है।

सुनवाई के दौरान हरिंद्र दीप सिंह बैंस ने हाईकोर्ट को बताया कि भारत सरकार के कॉपीराइट रजिस्ट्रार ने 27 अगस्त 2019 को सार्वजनिक नोटिस जारी किया। इस नोटिस में कहा गया कि धार्मिक समारोह, विवाह, सामाजिक उत्सव में साउंड रिकॉर्डिंग का इस्तेमाल कॉपीराइट के उल्लंघन की श्रेणी में नहीं आता और किसी लाइसेंस की आवश्यकता नहीं है।

‘कंपनी को हो रहा भारी नुकसान’

बैंस ने कोर्ट को बताया कि विवाह, बड़े होटल और मैरिज पैलेस में होते हैं। होटल व पैलेस वाले संगीत कार्यक्रम के बदले आयोजकों से लाखों रुपये लेते हैं मगर वह विवाह के नाम पर साउंड रिकॉर्डिंग का इस्तेमाल करते हैं और कंपनी से लाइसेंस नहीं लेते। यही वजह है कि कंपनी को भारी वित्तीय नुकसान का सामना करना पड़ रहा है। बैंस ने कोर्ट को बताया कि कॉपीराइट रजिस्ट्रार के पास इस तरह का विधायी अधिकार नहीं है और कंपनी हित के खिलाफ है। पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने सभी पक्षों को सुना और कहा कि कॉपीराइट रजिस्ट्रार का आदेश सही नहीं है। 27 अगस्त 2019 के नोटिस को रद्द कर दिया।