करनाल के फसल विविधीकरण के योद्धा किसान की कहानी: नए-नए तजुर्बो ने दिलाई खेती में महारत, अनुसंधान संस्थानों की नई किस्मों को अपने खेत में लगाता है सतपाल

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रिंकू नरवाल, करनाल32 मिनट पहले

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अपने खेत में फसल को दिखाता किसान सतपाल।

हरियाणा के जिले करनाल के कैमला गांव का प्रगतिशील किसान सतपाल सिंह (51 वर्ष) खेती की दुनिया में नए नए तजुर्बे करने का शौक रखता है। इन्हीं तजुर्बो ने उसे फसल विविधीकरण की तरफ बढ़ाया और आज वह इतनी महारत हासिल कर चुका है कि कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा अपनी नई किस्मों के प्रदर्शन प्लांट भी सतपाल सिंह के खेत में लगाए जाते है।

जिससे ना सिर्फ सतपाल को सीखने को मिलता है बल्कि आज वह सैकड़ों किसानों को भी खेती के संदर्भ में परामर्श देता है। चौधरी सतपाल सिंह ने युवा अवस्था में यानी 18 साल की आयु में खेती शुरू कर दी थी। चौधरी सतपाल सिंह अपने पिता से भी खेती की प्रेरणा मिली थी और उसे खेती का भी शौक था।

कृषि विभाग के शिविर में हिस्सा लेते गांव के किसान।

कृषि विभाग के शिविर में हिस्सा लेते गांव के किसान।

2001 से ही मिट्टी में मिलाता आ रहा है फसल अवशेष

खेती के क्षेत्र में सतपाल सिंह को कृषि अधिकारियों का सहयोग और मार्गर्शन भी मिला। वर्ष 2001 में कृषि अधिकारी डॉ. राजेंद्र सिंह ने सतपाल सिंह को गेहूं के फसल अवशेषों को मिट्टी में मिलाने की सलाह दी और फानों में आग न लगाने से होने वाले फायदों से भी अवगत करवाया। जिसके बाद उसने कभी फानों में आग नहीं लगाई।

किसान सतपाल के खेतों में पहुंचे कृषि विभाग के अधिकारी व किसान।

किसान सतपाल के खेतों में पहुंचे कृषि विभाग के अधिकारी व किसान।

प्रकृति के साथ नहीं करना चाहिए खिलवाड़

सतपाल सिंह बताते है कि धरती को माता कहते है और प्रकृति के साथ खिलवाड़ नहीं करना चाहिए। वह अवशेषों में आग लगाने के खिलाफ है। उसने बताया कि उसके खेत पर अलग-अलग अनुसंधान संस्थानों के वैज्ञानिक भी भ्रमण के लिए आ चुके है और फसल अवशेष प्रबंधन को लेकर भी सवाल करते है। सतपाल सिंह ने वैज्ञानिकों को भी इस बात की गारंटी दी है कि उसने 1995 से लेकर आज तक फसल अवशेषों में कभी आग नहीं लगाई। इसकी पुष्टि के लिए कोई भी अधिकारी सेटेलाइट से 1995 से 2023 तक का डाटा निकलवाकर निरीक्षण कर सकता है।

किसान के फसल से घास को निकालते मजदूर।

किसान के फसल से घास को निकालते मजदूर।

गेहूं के अवशेषों में मूंग, खेत पर पहुंचे वैज्ञानिक

किसान सतपाल ने वर्ष-2022 में गेहूं के अवशेषों में हैप्पी सीडर मशीन से 6 एकड़ में मूंग की बिजाई की। उसने एक एकड़ में परंपरागत विधि से जुताई करके मूंग की बिजाई की। कृषि विज्ञान केंद्र राष्ट्रीय डेरी अनुसंधान संस्थान करनाल के संयोजक डॉक्टर पंकज सारस्वत के नेतृत्व में वैज्ञानिकों की टीम ने मूंग के प्रदर्शन प्लाटों का अवलोकन करके यह निष्कर्ष निकाला कि जुताई किए हुए खेत में फसल मूंग की फसल बहुत कमजोर है, लेकिन गेहूं के अवशेषों में बोई हुई मूंग की फसल सबसे अच्छी है, उसमें सतपाल सिंह ने कोई रासायनिक खाद व कीटनाशक दवाई का प्रयोग नहीं किया है। सतपाल सिंह को गेहूं अवशेषों में बोई गई मूंग की फसल की छह क्विंटल प्रति एकड़ उपज मिली है।

अरहर की संकर किस्म का भी लगाया प्रदर्शन प्लांट

किसान ने फसल विविधीकरण के अंतर्गत कृषि विज्ञान केंद्र राष्ट्रीय डेरी अनुसंधान संस्थान करनाल की ओर से अरहर की संकर किस्म का प्रदर्शन प्लांट खेत पर लगाया। अरहर की उसे 11 क्विंटल प्रति एकड़ के हिसाब से पैदावार मिलने के साथ अरहर की फसल का कद बहुत छोटा केवल 4 फुट होने की वजह से उसमें फली छतक सुंडी का आक्रमण भी नहीं हुआ तथा स्प्रे करना भी बहुत आसान रहा।

खेत में उगाई अरहर की संकर किस्म को दिखाता किसान का बेटा।

खेत में उगाई अरहर की संकर किस्म को दिखाता किसान का बेटा।

छोटे से लेकर बड़े कृषि संयंत्र रखता है सतपाल

सतपाल सिंह ने अपने खेत पर खेती के सभी यंत्र जैसे-सुपर सीडर मशीन, हैप्पी सीडर मशीन, रोटावेटर, थ्रेसर, डीएसआर मशीन रखी हुई है। चौधरी सतपाल सिंह अपने खेत में गेहूं की बिजाई सुपर सीडर मशीन व हैप्पी सीडर मशीन से कई सालों से करता आ रहा है। उसने 28 एकड़ में धान की सीधी बिजाई की है। सतपाल सिंह ने 5 एकड़ में गन्ना की फसल विविधीकरण के अधीन लगाई है तथा गन्ने के साथ मूंग की लाइनों में बिजाई की है तथा मूंग की फसल की फली तोड़ने के बाद मूंग की फसल गन्ने की फसल में खाद का काम करेगी।

अनुसंधान संस्थानों के प्रत्येक कार्यक्रम में लेता है हिस्सा

किसान सतपाल सिंह भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान करनाल, कृषि विज्ञान केंद्र राष्ट्रीय डेरी अनुसंधान संस्थान करनाल व कृषि किसान कल्याण विभाग करनाल के सभी कार्यक्रमों में हिस्सा लेता है। ये संस्थान इसके खेत पर हर सीजन में कई-कई प्रदर्शन प्लाट लगाते हैं। सतपाल सिंह इन संस्थानों द्वारा प्राप्त नई किस्मों के बीज की अपने खेत में फसल लेने के बाद नई-नई किस्में गेहूं, चना, मूंग के उत्पादन को आसपास के गांव कलहेडी, जमालपुर, डिंगर माजरा, कैमला, पनौड़ी के किसानों को सस्ते रेट पर ही वितरित कर देता है।

अपनी फसल को देखता किसान सतपाल।

अपनी फसल को देखता किसान सतपाल।

150 से ज्यादा किसान निरंतर लेते रहे उनसे परामर्श

चौधरी सतपाल सिंह के आसपास 150 के लगभग किसान सतपाल से निरंतर परामर्श लेते रहते हैं। उनमें से जसविंदर सिंह गांव डिंगर माजरा, कृष्ण कुमार, जीत सिंह कैमला का कहना है कि सतपाल सिंह के नए-नए प्रयोगों का हमें बहुत लाभ हुआ है। चौधरी सतपाल सिंह से सीखने से हमारी पैदावार भी बढ़ी है। ऐसे में उपरोक्त संस्थान सतपाल सिंह के खेतों को शोध केंद्र बना दे तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। अगर सतपाल सिंह को फसल विविधीकरण का योद्धा कहे तो वह भी गलत नहीं होगा, क्योंकि जिस तरह से फसल विविधीकरण किया है वह काबिले तारीफ है।

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