कार पर लंबा वेटिंग पीरियड हो सकता है स्कैम! ऐसे रहें सावधान

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हाइलाइट्स

कार पर लंबा वेटिंग पीरियड झांसा भी हो सकता है.
कई बार कार की डिमांड बढ़ाने के लिए डीलर ये ट्रिक अपनाते हैं.
इससे कार डीलर और कंपनी, दोनों को फायदा होता है.

नई दिल्ली. आजकल गाड़ियों पर लंबा वेटिंग पीरियड देने का जैसे चलन सा हो गया है. आप शोरूम पर किसी कार को बुक कराने जाते हैं तो डीलर आपको एक लंबा वेटिंग पीरियड थमा देता है. कुछ डीलर आपको उस कार के टॉप वेरिएंट की डिलीवरी जल्दी कराने की बात कहकर उसे ही खरीदने का दबाव बनाते हैं. कई ग्राहक इस बात की शिकायत करते हैं कि उन्हें बहुत अधिक वेटिंग पीरियड दिया जा रहा है. यानी कार को बुक करने से ग्राहकों को डिलीवर करने के बीच का समय. कुछ मामलों में तो कार के लिए 1.5 साल या फिर 2 साल तक का भी वेटिंग पीरियड भी दिया जा रहा है.

लेकिन क्या लंबा वेटिंग पीरियड कोई स्कैम तो नहीं? क्या डीलर और कंपनी दोनों इस खेल में शामिल होते हैं? लंबे वेटिंग पीरियड से डीलर और कंपनी, दोनों को एक तरह से फायदा ही पहुंचता है? तो चलिए जानते हैं गाड़ियों पर लंबे वेटिंग पीरियड का खेल क्या है…

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होती है कार की मार्केटिंग
एक नजरिये से देखें तो कार के लंबे वेटिंग पीरियड के पीछे का मकसद उसकी मार्केटिंग भी होती है. जब आप सुनते हैं कि किसी कार पर वेटिंग पीरियड अधिक है तो आपके मन में क्या ख्याल आता है. ज्यादातर लोग ये सोचते हैं कि कार बहुत अच्छी ही होगी इसलिए उसपर इतना अधिक वेटिंग पीरियड है. इसका मतलब कार पूरी तरह सड़क पर उतरी भी नहीं कि वह सुपरहिट हो गई. इसका फायदा कंपनी और डीलरशिप को होता है. इससे और अधिक लोग उस कार की बुकिंग करवाने लगते हैं.

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टॉप वेरिएंट का झांसा
कई बार देखा जाता है कि जब किसी नई कार की डिमांड ज्यादा होती है, तो डीलर उसे जल्दी डिलीवर करने के नाम पर ग्राहक से ज्यादा पैसे ऐंठ लेते हैं. इसके अलावा, कई डीलर कार के टॉप वैरिएंट को जल्दी डिलीवर करने की बात कहकर उसे बुक करवाने का दबाव डालते हैं. कई बार ऐसा भी देखा गया है कि डीलर एंट्री लेवल वेरिएंट की बुकिंग लेने से ही मना कर देते हैं. यह इसलिए क्योंकि टॉप वेरिएंट की कीमत ज्यादा होती है और इसे बेचने में डीलरशिप और कंपनी का मार्जिन अधिक होता है.

सप्लाई चेन भी है समस्या
कोरोना महामारी के वजह से ऑटोमोबाइल चिप और इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट का प्रोडक्शन प्रभावित हुआ है. इससे कंपनियों को मिलने वाली सप्लाई कम हो गई है. इस वजह से ऑटोमोबाइल कंपनियों की मैन्युफैक्चरिंग घट गई है. गाड़ियों की कम मैन्युफैक्चरिंग और लगातार बढ़ रहे डिमांड के वजह से भी कारों का वेटिंग पीरियड बढ़ रहा है.

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